Tuesday 14 June 2016

पोर्टब्लेयर - बंदरगाह से सेलुलर जेल- 2

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भारत को अंग्रेजी शासन से मुक्ति दिलाने के लिए 1857 में बड़े पैमाने पर भारत में विद्रोह शुरू हुआ जिसे 1857 की क्रांति के नाम से भी जाना जाता है. इस क्रांति के दिनों में अंग्रेजी शासक इस क्रांति को दबाने के लिए अथक प्रयास कर रहे थे तथा वे इस बारे में भी विचार कर रहे थे कि विजय प्राप्त करने के बाद असंख्य क्रांतिकारियों को किस प्रकार से सबक सिखाया जाये ताकि वे पुनः सिर न उठा सके. इन क्रांतिकारियों को रखने के लिए उन्हें एक उपयुक्त स्थान की तलाश थी. तब उनका ध्यान इन द्वीपों पर गया. लार्ड कैनिंग ने इन द्वीपों पर कैदी बस्ती बसाने के लिए माउंट के नेतृत्व में एक आयोग की नियुक्ति की. आयोग ने इस द्वीप का भ्रमण किया और आयोग ने एक कैदी बस्ती बनाने की सिफारिश की जिसे कंपनी ने स्वीकार कर लिया इस प्रकार यहाँ पर जेल बनाने की शुरुआत हुई. प्रारम्भ में इस बस्ती को बसाने के लिए रॉस द्वीप को चुना गया. इस द्वीप पर घना जंगल था. इस द्वीप की कटाई सफाई के लिए 1857 के क्रांतिकारियों को लगाया गया. क्रांतिकारियों से कठिन परिश्रम कराया जाता था और उनसे अमानवीयता का व्यवहार किया जाता था. क्रांतिकारी इस नरक तुल्य जीवन से मृत्यु को अच्छा समझते थे इसलिए वे अवसर पाकर भाग निकलते थे. परन्तु भागना भी इतना आसान नहीं था क्योकिं चारो तरफ अथाह समुद्र था. कुछ कैदी तैर कर भाग निकलते थे कुछ हो सकता है तैर न पाने के कारण समुद्र में ही मर जाते होंगे. धीरे धीरे यहाँ पर लाये जाने कैदियों की संख्या बढ़ने लगी ऐसा अनुमान है कि शुरू में यहाँ पर 2500 क्रांतिकारी सेनानी को भेजा गया था. अब तो उन  कैदियों का नाम पता लगाना भी मुश्किल है. इसका कारण है इसका दितीय महायुद्ध में 23 मार्च 1942 से 9 अक्टूबर 1945 तक इस द्वीप पर जापान का कब्ज़ा होना. युद्ध के दिनों में कोई देश कितना क्रूर और निर्दयी हो जाता है इसका सबसे भयंकर उदाहरण उसने पेश किया. सारे अंग्रेजी कागजात जला दिए जिससे कैदियों का सारा रिकॉर्ड नष्ट हो गया. जैसे जैसे समय बीतता गया कैदियों की संख्या बढ़ने लगी कुछ कैदियों ने महिला बंदियों से शादी कर ली. इससे इस द्वीप में एक नयी जाति और वर्ण विहीन समाज की स्थापना हुई. कालांतर में बढ़ती जनसँख्या के कारण  कानून और अपराध की समस्याएं भी बढ़ने लगी इस पर नियंत्रण के लिए पोर्ट ब्लेयर में सेलुलर जेल का निर्माण कार्य हाथों लिया गया.    

           
कमल के फूल की पंखुरियों की तरह सात भुजाओं वाली इस तिमंजली अनूठी जेल का निर्माण कार्य 1896 में शुरू हुआ और 10 साल में बनकर तैयार हुई. इस जेल में 693 कोठरी थी. एकांत कोठरी को अंग्रेजी में सेल कहते हैं इसलिए इस जेल का नाम सेलुलर जेल पडा. प्रत्येक कोठरी का आकार 4.5 x 2. 7 मीटर (14. 8 x 8. 9 फ़ीट ) है. इसमें 3 मीटर की ऊंचाई पर रोशनदान है. भवन के मध्य में एक ऊँची मीनार है. जिस पर खड़े होकर एक ही पहरेदार एक समय में में सातों विंग पर नजर रख सकता था. इन सातों विंग को इस प्रकार से डिज़ाइन किया गया है कि एक विंग का मुंह दूसरे विंग की पीछे की साइड में है. इस डिज़ाइन के कारण एक विंग में रहने वाला कैदी दूसरे विंग में रहने वाले कैदी को नहीं देख सकता था. इसकी दूसरी विशेषता ये थी कि एक विंग से दूसरे विंग पर जाने के लिए मध्य में स्थित मीनार पर आना आवश्यक था. 

इस जेल में प्रसिद्द क्रांतिकारियों जैसे बटुकेश्वर दत्त, फजले हक़ खैराबादी, योगेन्द्र शुक्ल, मौलवी लियाकत अली, वीर सावरकर, भाई परमानन्द, सोहन सिंह, बरिंद्र कुमार घोष और बाघा जतिन इत्यादि ने सजा काटी है. समय के साथ साथ और समुद्री तूफानों के कारण इसके दो विंग नष्ट हो गए. आजादी मिलने के बाद भारत सरकार ने भी इस जेल के दो विंग को समाप्त किया परन्तु इसका स्वतंत्रता सेनानियों ने विरोध किया। 1969 में इसके शेष बचे तीन विंग और मध्य मीनार को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया. शेष स्थान पर पहले ही 1963 में एक अस्पताल की स्थापना कर दी गयी थी. 

1 comment:

  1. सेलुलर जेल के बारे में बहुत अच्छी जानकारी देने के लिए धन्यवाद, पोस्ट बहुत अच्छी है. अागे की पोस्ट का इंतजार है.

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